बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2B इतिहास - मध्यकालीन एवं आधुनिक सामाजिक एवं आर्थिक इतिहास (1200 ई.-1700 ई.) बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2B इतिहास - मध्यकालीन एवं आधुनिक सामाजिक एवं आर्थिक इतिहास (1200 ई.-1700 ई.)सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2B इतिहास - मध्यकालीन एवं आधुनिक सामाजिक एवं आर्थिक इतिहास (1200 ई.-1700 ई.) - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- मुगलकाल में भू-राजस्व वसूली की दर का किस अनुपात में वसूली जाती थी? ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर क्षेत्रवार मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर -
भू-राजस्व वसूली की दर
अबुल फजल के अनुसार मुगल बादशाह के द्वारा अपनी प्रजा से वसूली करने के अधिकार पर कोई नैतिक सीमा निर्धारित नहीं की जा सकती थी। 'प्रजा के जीवन और सम्मान के संरक्षक द्वारा अगर उसका सब कुछ हरण कर लिया जाता है तो भी उन्हें अपने संरक्षक के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए। आगे वह कहता है कि 'न्यायप्रिय शासक' प्रजा से अपनी आवश्यकता से ज्याला वसूल नहीं करता था। परन्तु यह सीमा उसी के द्वारा निर्धारित की जाएगी।
औरंगजेब ने स्पष्ट रूप से घोषित किया कि भू-राजस्व शरीअत के अनुसार अर्थात् कुल उत्पादन के आधे से ज्यादा नहीं लिया जाना चाहिए।
यूरोपीय यात्री पेलसर्ट, जो 17वीं शताब्दी में भारत आया था, उसने लिखा है कि 'किसानों से इतना ज्यादा ले लिया जाता था कि अपना पेट भरने के लिए उन्हें सूखी रोटी तक नहीं मिलती है।' इरफान हबीब लिखते हैं, 'किसानों पर राजस्व मांग के अलावा अन्य करों और पदाधिकारियों की नियमित और अनियमित वसूली का अपार बोझ था।'
शेरशाह ने भूमि की उर्वरता के आधार पर तीन प्रकार की फसल दरें अपनाई थीं और प्रत्येक फसल के लिए इन तीन दरों के अनुपात का 1/3 अंश राजस्व मांग के रूप में निर्धारित किया गया। अबुल फजल वर्णन करता है कि अकबर के अधीन 1/3 अंश राजस्व मांग निर्धारण की न्यूनतम दर थी। मुगल कालीन राजस्व के विषय में नवीन अध्ययनों से पता चलता है कि मुगलों के शासन काल में भू-राजस्व कुल उत्पादन का 1/3 से 1/2 के बीच में था। और कुछ इलाकों में 3/4 भी था। सूक्ष्म पर्यवेक्षण करने पर पता चलता है कि विभिन्न प्रांतों (सूबों) में राजस्व मांग भिन्न-भिन्न थी। कश्मीर में सिद्धान्ततः यह मांग 1/3 थी परन्तु वास्तविकता में 2/3 भाग वसूला जाता था। अकबर ने यहाँ कुल उपज के आधे भाग की मांग का आदेश दिया था।
थट्टा (सिंध) प्रांत में भू-राजस्व एक तिहाई की दर से लिया जाता था। मजहर ए शाहजहानी (1634 में सिंघ के प्रशासन पर लिखा गया संस्मरण) के लेखक यूसुफ मिराक ने लिखा है कि जब आइन-ए अकबरी लिखा गया था, तब थट्टा की जागीर तरखानों के पास थी, जो किसानों से कुल उत्पाद का आधे से ज्यादा राजस्व नहीं वसूल करते थे। कभी-कभी वे कुल उत्पाद का एक तिहाई या एक चौथाई हिस्सा ही वसूल करते थे।
अजमेर सूबे में भू-राजस्व की दरें भिन्न-भिन्न थीं। पूर्वी राजस्थान के उर्वर क्षेत्र में राजस्व मांग कुल उत्पाद का एक तिहाई से लेकर आधे तक होती थी। आइन-ए अकबरी के आधार पर इरफान हबीब कहते हैं कि मरूभूमि प्रदेशों में यह राजस्व मांग कुल उत्पाद का सातवां या आठवां हिस्सा होती थी। लेकिन सुनीता बुधवार जैदी के अनुसार, राजस्थान के किसी भी क्षेत्र में इतनी कम दर का उल्लेख अन्य स्रोतों में नहीं है। यहां तक कि जैसलमेर में भी कुल उत्पाद का पांचवाँ (रबी की फसल में) और खरीफ फसल का चौथाई हिस्सा वसूल किया जाता था।
मध्य भारत में यह दर 1/2, 1/3 और 2/3 के बीच थी। दक्खन में राजस्व की दर 1/2 (साधारण भूमि पर), 1/3 (कुओं द्वारा सिंचित भूमि पर), तथा 1/4 (उच्च किस्म की फसलों पर) थी।
औरंगजेब रसिकदास करोड़ी को लिखे गए अपने फरमान (आदेश) में कहता है कि जब किसान परेशान या संकट में हों और बटाई व्यवस्था से वसूली हो तो राज्य द्वारा कर के रूप में 1/2, 1/3 या 2/5 भाग राजस्व के रूप में वसूल किया जाना चाहिए। औरंगजेब के अधीन अकबर की तुलना में राजस्व दरें अधिक थीं। शायद इसका कारण यह था कि उस काल में कृषि मूल्यों में सामान्य रूप से वृद्धि हुई थी, अतः वास्तविक राजस्व दर में प्रत्यक्षतः कोई वास्तविक वृद्धि नहीं हुई थी।
राजस्थान के बारे में यह जानकारी मिलती है कि वहाँ वर्ग तथा जाति के आधार पर राजस्व दरें अलग-अलग होती थीं। एस० पी० गुप्ता, सतीश चन्द्र और दिलबाग सिंह के अध्ययनों से पता चलता है कि पूर्वी राजस्थान के कुछ परगनों में ब्राह्मणों और बनियों को रियायती दर पर राजस्व देना होता था।
यह कहा जा सकता है कि राजस्व मांग की दर कुल उत्पादन के आधे से लेकर एक तिहाई हिस्से तक थी। चूंकि यह राजस्व भूमि की प्रत्येक इकाई पर 'समरूप' ढंग से आरोपित किया जाता था, चाहे खेत का आकार और प्रकृति जैसी भी हो, यह 'प्रतिगामी' (regressire) प्रकृति का द्योतक है-छोटे खेतों वाले किसानों पर यह बोझ बड़े किसानों की तुलना में काफी भारी पड़ता था, क्योंकि छोटे किसानों को कम भूमि के आधार पर कोई रियायत नहीं थी।
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- प्रश्न- मुगलकाल में उद्योगों के विकास के लिए नियुक्त किए गए अधिकारियों के पद और कार्यों का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- मुगलकालीन कारखानों का जनसामान्य के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा?
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